कुशीनगर पुलिस की कार्यप्रणाली निष्पक्षता पर सवाल
जुगाड़ व हनक के बल पर सीओ पर दर्ज हो जाता है मुकदमा
तुर्कपट्टी थाना क्षेत्र में मस्जिद में विस्फोट के मामले में आईजी का आदेश बेअसर
डे
कुशीनगर। पुलिस विभाग में जुगाड़ व हनक इस कदर हावी हैं कि कही पुलिस कप्तान के निर्देश पर सीओ रैंक के अधिकारी के खिलाफ दरोगा के द्वारा मुकदमा दर्ज कर दी जाती हैं तो कही बम ब्लास्ट होने की घटना में आईजी का आदेश भी दरोगा को हटा नही पा रहा है। यह हकीकत जुगाड़ व हनक की खुद ही सच्चाई बयां कर रही है। तुर्कपट्टी थाना क्षेत्र की एक मस्जिद में विस्फोट की घटना ने पूरे प्रदेश को हिलाकर रख दिया था, फिर भी बड़े साहब के खिलाफ कोई कार्रवाई नही हुई, जबकि छोटे मामलो में भी कइयो को अपनी कुर्सी गवानी पड़ती हैं, लेकिन इतनी बडी घटना में कार्रवाई का न होना उच्चाधिकारियों की कार्यप्रणाली पर सवाल उठना लाजिमी हो जाता हैं।
कुशीनगर जिले के तुर्कपट्टी थाने के बैरागी पट्टी गांव की एक मस्जिद में बीते नवम्बर माह में विस्फोट हो गया। मस्जिद में लो ग्रेड का विस्फोटक पदार्थ रखा गया था। गनीमत यह थी कि विस्फोट नमाज पढ़ते वक्त नहीं हुआ, नही तो बड़ी घटना घटित हो सकती थी। हालांकि उस समय तुर्कपट्टी थाने की पुलिस पहले बैट्री में विस्फोट का दावा करती रही, लेकिन फोरेंसिक टीम ने जांच की तो मामला कुछ और ही निकला। मस्जिद में विस्फोट होने की सूचना पर एटीएस और बम निरोधक दस्ते की टीम भी मौके पर पहुंची और गहन छानबीन की। विस्फोट होने की सूचना के बाद थानाध्यक्ष की तहरीर पर पुलिस ने मस्जिद के मौलवी सहित सात लोगों पर केस दर्ज कर लिया और गिरफ्तारी कर जेल भेज दिया। पुलिस की गिरफ्त में आया मौलवी पश्चिम बंगाल का रहने वाला है,जिसके बाद आतंकी साजिश के भी कयास लगने शुरू हो गये थे। उस समय बात सामने आयी कि मस्जिद में नमाज पढ़ने की तैयारी कर रहे थे, उसी वक्त विस्फोट हो गया। विस्फोट इतना तेज था कि खिड़कियों के शीशे तक टूट कर जमीन पर गिर गए थे। पहले तो लोग बैट्री में विस्फोट होने की बात कहने लगे और स्थानीय थाने की पुलिस ने भी बैट्री फटने की बात कही लेकिन मामला जब अधिकारियों तक पहुंचा तो फोरेंसिक टीम ने जांच कर विस्फोटक पदार्थ होने का दावा किया। लखनऊ एटीएस और बम निरोधक दस्ते की टीम मौके पर पहुंची, आगरा लैब की जांच रिपोर्ट में पता चला कि लो ग्रेड के विस्फोटक पदार्थ से विस्फोट हुआ था। बम विस्फोट की प्रदेश की पहली घटना होने के बाद पुलिस के जिम्मेदार अधिकारियों के कान खड़े हो गये थे और यह घटना प्रदेश स्तर पर सुर्खियों में रही। मामले में सीधे शासन स्तर से मॉनिटरिंग भी होने लगी, तब पहुचे तत्कालीन एडीजी जयनारायण सिंह घटना में शामिल सभी आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई करने के साथ ही थानाध्यक्ष को हटाने तक का निर्देश दिया था, लेकिन जिम्मेदार एडीजी के आदेश को ताक पर रख थानाध्यक्ष को अभयदान दे दिया, लेकिन वही जिम्मेदार हाटा में लूट की घटना में इंस्पेक्टर के खिलाफ निलंबन की कार्रवाई करते हैं। दूसरी तरफ एक महिला के शिकायत व कप्तान के निर्देश पर कसया थानाध्यक्ष सीओ के खिलाफ मुकदमा लिख देते हैं। यह घटनाक्रम जुगाड़ व हनक की दास्तां खुद ही बताने के लिए काफी है। अब सबसे बड़ा सवाल है कि जिस मामले में इतने दिनों बाद भी एक आरोपी को जमानत मिली तो फिर थानाध्यक्ष इतने बड़ी घटना में दोषमुक्त कैसे हो गये। विभागीय सूत्रों की माने तो जिस मामले में थानाध्यक्ष खुद वादी हो, तो उस मामले की जांच उच्चाधिकारी करते हैं, लेकिन यहां तो अधीनस्थों से ही मामले की जांच कराई गयी। चर्चा है कि इतने बड़े मामले में अधीनस्थों से इसलिए विवेचना करायी गयी, जिससे थानाध्यक्ष को मामले से बचाया जा सके। इस तमाम घटनाक्रम से पुलिस खुद ही कटघरे में नजर आ रही हैं। इसकी क्या हकीकत हैं यह तो जांCच के बाद ही स्पष्ट हो पायेगा, लेकिन कुशीनगर में पुलिस की कार्यप्रणाली निष्पक्ष नही है, यहां बस जुगाड़ व हनक का ही बोलबाला हैं। यहां मेरिट वाले हाशिये पर चल रहे है।